6. लैंगिक –समानता के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी

आज़ादी  के सात दशक बीत जाने के बावजूद देश में महिलाओं को अमूमन हर क्षेत्र में  लिंगभेद से जुझना पड़ रहा है। सच्चाई तो यही है कि इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।



भारत की आजादी के बाद के सफर में महिला सशक्तिीकरण का सफर महिला आरक्षण और उसकी राजनीति में भले अटका हुआ हो लेकिन इसी दौरान अनेक महिलाओं ने खुद राह तलाशते हए अपनी मजिल तय कर ली है। इस मौजुदा राजनीतिक परिदृश्य से लेकर कॉरपोरेट जगत या किसी अन्य क्षेत्रों  मे आसानी से देखा जा सकता है। जहां अनेक महिलाएं अपनी छाप छोड़ने और अपनी मौजदगी दर्ज कराने में सफल रही है। शायद आज की युवा पीढ़ी के लिए दशको पहले के कई नाम जाने-अनजाने लगे, लेकिन उस दौर में राजनीति में सरोजनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित सचेता कपालानी,सिनेमा जगत में दु र्गा खोटे शैकक्षणिक क्षेत्र में ईशा बसंत जोशी (पहली महिला आईएएस) आदि कुछ ऐसे ही नाम हैं। आज मीडिया में भले ही अनेक महिलाएं शीर्ष पर हैं लेकिन 1938 में होमानी व्यारवाला पहली फोटो जर्नलिस्ट थीं। साठ के दशक में ही 1966 में रीता फरिया ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीत कर भारतीय सुंदरता को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ला दिया था महिला आईपीएस किरन बेदी को कौन नहीं जानता। तो 1984 में बद्री पाल माउंट एवरेट पर पहुंचने वाली महिला बनीं। एस्ट्रोनाट कल्पना चावला ने स्पेस क्षेत्र में देश का नाम रोशन किया। हालांकि सेना के क्षेत्र में देश का नाम रोशन किया। हालांकि सेना के क्षेत्र में महिला को अपनी जगह बनाने में अवश्य कई दशक लगा गए। 1992 में प्रिया झिंगन थल सेना में तो पदम बंदोपाध्याय एयर बाइस मार्शल के पद तक पहंची। खेल में भी पीटी ऊषा कर्नम मल्लेश्वरी से लेकर सानिया मिर्जा और सायना नेहवाल तक की एक लंबी सुची है। जहाँ तक राजनीतिक सफर की बात है, तो देश प्रधानमंत्री के पद पर इंदिरा गांधी को देख चुका है राजनीति भले ही उनको विरासत में मिली, लेकिन वह अपना एक अलग स्थान बनाने में सफल रहीं। आज यह सु खद अनुभव देता है कि देश की राजनीति और सत्ता में महिलाएं हावी हैं। यह सच है कि आज देश में महिलाएं पुरुष से कंधा मिला कर चलने का मादा रखती हैं इसके बावजूद आज भी देश में उन्हें स्त्री होने के अभिशाप से गुजरना पड़ ही रहा है। महिला सशक्तिकरण सरकारी स्लोगन भर बना हुआ है। कन्या भ्रूण हत्या का रोग पढ़े-लिखे परिवारों में अधिक देखने को मिल रहा है। अभिजात्य वर्ग में नैना सहानी, जेसिका लाल, रुचिका जैसे मामले जब-तब देखने को मिल जाते हैं। गरीब और अनपढ़ महिलाएं आज भी देश के विभिन्न हिस्से में कभी डायन बताकर तो कभी अन्य कारणों से नग्न कर दी जाती है। देश का एक वर्ग अभी भी सामंतवादी मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाया है। यही कारण है कि आज़ादी  के सात दशक बीत जाने के बावजूद देश में महिलाओं को अमूमन हर क्षेत्र में  लिंगभेद से जुझना पड़ रहा है। सच्चाई तो यही है कि इस दिशा में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।