भारत की सनातन संस्कृति के संरक्षण में ही देश का विकास है

भारत की सनातन संस्कृति के संरक्षण में ही देश का विकास है


                          


किसी भी राष्ट्र की संस्कृति ही उस राष्ट्र की पहचान होती है। संस्कृति जीवन को जीने की विधि है। संस्कृति किसी भी सभ्यता की आत्मा है।  हमारे सोचने और जीने की विधि में हमारी अंतःस्थ प्रकृति की अभिव्यक्ति ही संस्कृति है। इसी के माध्यम से हम अपने अंदर और बाहर के जीवन को ,शारीरिक, मानसिक शक्तियों को संस्कारवान, विकसित और दृढ़ बनातें है। मानव संस्कृति के अंतर्गत ही प्रशिक्षित होकर व्यक्ति संस्कारी बनता है। पर दुविधा तो ये है कि  हमारे भारत में आज की शिक्षा संस्कारयुक्त ना होकर किताब के अक्षरों तक ही सीमित रह गई है। परिणाम ये हो रहा है कि समाज  मे आज की पीढ़ी अपनी सनातन  संस्कृति को भुलती जा रही है। वो सनातन संस्कृति जो व्यक्ति-समाज-राष्ट्र के जीवन का सिंचन कर उसे पल्लवित, पुष्पित, फलयुक्त बनानें वाली सरिता है। वो  सनातन संसकृति जिसका अस्तित्व यूनान, रोम, मिस्त्र और चीन की संस्कृति से भी पुरानी है। जिस भारत की सनातन संस्कृति के महत्वता को विदेशों के बुद्धिजीवीयों ने मानव के कल्याण का और उसके सफल जीवन का आधार माना उसी भारत का युवा वर्ग यहां की सनातन संस्कृति को भूलता रहा है जो आज  के युवा को अंधकार की ओर ले जा रहा है।


एक तरफ युवा वर्ग अंधकार में है दूसरी तरफ स्वार्थ, तुच्छ और संकिर्ण मानसिकता समाज को तोड़कर ना जानें कोन से धर्म की परिभाषा बताना चाह रही है। स्वामी विवेकानंद ने पुरे विश्व में भारत के इसी सनातन संस्कृति का परचम लहराया था। और वो युवाओं को ही देश का भविष्य मानते थे। लेकिन आज का युवा तो समाज में भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगा कर समाज में अलग ही अभिव्यक्ति की आजादी को दिखा रहा है मेरे नजर में आज समाज में एसी मानसिकताये पैदा हो चुकी है जो भारत की सनातन संस्कृति को तोड़ कर इसका अस्तित्व ही खत्म करना चाहती है। इससे ये साफ हो जाता  है की आज भारत की सनातन संस्कृति का अस्तित्व खतरे में हैं। और इसके संरक्षण की आज अनिवार्य आवश्यक्ता है। हमें इसके संरक्षण के लिये समाज  में श्रेष्ठ नेतृत्व की अनिवार्य आवश्यकता है। जिसके लिये व्यक्तियों का शिक्षण भारत की सनातन संसकृति के संरक्षण के दृष्टिकोण से देनें की जरुरत है। 


भारत की सनातन संस्कृति का संरक्षण के लिये आज के पीढ़ी को सबसे पहले



  1. धर्म को समझनें की जरुरत है जिसका मतलब है केवल न्याय व्यवस्था की स्थापना जिसमें मानव अधिकारों का संरक्षण हो और अपराधीयों दण्ड देकर अपराधों पर रोकथाम हो।

  2. अपनी पुष्तैनी भाषा के संरक्षण करनें के लिये कार्य करना चाहीयें

  3. संस्कृति की कला और तकनीकी को ज्यादा से ज्यादा  लोगो को साझां करनें की जरुरत है।

  4. समाजिक और राष्ट्रिय महत्व के उत्सवों का प्रबंधन और सहभागिता करना चाहियें

  5. अपनी संस्कृति पर गर्वक करना चाहीयें और उसी अनुसार जीवन में आचरण करना चाहीयें।


 


हमारी  सनातन संस्कृति तो देश, समाज और जाति का प्राण है वही से इन्हे जीवन मिलता है किसी भी देश की समाजिक प्रथाए व्यवहार आचार विचार पर्व त्योहार समुदायिक जीवन का संपुर्ण ढांचा ही संस्कृति की नीवं पर खड़ी होती है। जिस दिन ये टूटती है उसी दिन समाज भी टूट जाता है। और तब समाज में असंतुलन देखनें को मिलता है जो आज हमें भारत देश में देखने को मिलता है हमें इस बात को समझना होगा की भारत की सनातन संस्कृति की रक्षा और उसके संरक्षण में ही सभी मानव जाति का कल्याण है और सभी अन्य संस्कृति का विकास भी इसीलिये हम सबको भारत की सनातन संस्कृति की रक्षा का संकल्प लेना चाहीयें क्योकी ये हर व्यक्ति का स्वधर्म है।