देश के बढ़ते अपराध में युवाओ का शामिल होना एक गंभीर चिंता का विषय है।

  बढ़ते अपराध में युवाओ का शामिल होना एक गंभीर चिंता का विषय है।



अगर समाज में अपराध बढ़ रहा है तो फिर इस बात को समझ जाना चाहियें की मानव सुरक्षा खतरे में है। जब मानव ही सुरक्षित नही है तो उसका विकास कैसे होगा ?  जहां मानव सुरक्षा खतरे में होगी वहां मानवो को सुख सुविधा देने की बात बेकार ही साबित होगी। वैसे तो अपराध नियंत्रण करने के बढ़े-बढ़े दावे सरकार करती है। समाज में पुलिस व्यवस्था है, कानून व्यवस्था है अपराध पर नियंत्रण करने के लिये। लेकिन फिर भी दिनो दिन समाज में अपराध पैर पसार रहा है। एसा नही है कि केवल मजबूर लोग या अनपढ़ लोग अज्ञानता में अपराध कर रहे है बल्कि हालात तो ये है की पढ़ा लिखा तबका औऱ अच्छे संपन्न परिवार से जुड़ा आदमी भी अपराध करने की भूल कर रहा है।


अपराध करने का कारण


अपराध का मूल कारण है जर(पैसी), जोरु (लड़की), जमीन जिसके लिये आदमी लालची बना हुआ है। लालच मे इतना अंधा है कि वह इंसानियत को भूल कर इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली अपराधिक घटनाओ को अंजाम दे रहा है। मैं जब जयपुर , उदयपुर, अलवर और देश की राजधानी दिल्ली के केंद्रिय कारागार में मोटिवेश्नल कार्यक्रम के लिये गया तो मुझे वहा के ज्यादातर बंदी भाई एसे मिले जो अपने किये पर शर्मिंदा थे। उनकी ऑखों मे पश्चाताप के आंसू थे। सबका सपना जेल की चार दिवारी से बाहर निकल कर अपने जीवन को नये सिरे से शूरु करना था। मै जानता हू कि आपके मन में ये बात भी होगी की जेल में कुछ अपराधी तो जान बूझ कर जाते है बिल्कुल सही है लेकिन इसके लिये भी हम और हमारा समाज ही जिम्मेदार है। दुनिया का कोई भी इंसान ये नही चाहता की वह अपाराधी बनें लेकिन अगर कोई आदमी प्रोफेश्नल अपराधी बनने की ओर जा रहा है तो हो सकता है की जिस समाज मे वह रह रहा है वहां उसकी जरुरते सीधे रास्ते से पुरी नही हो पा रही हो और इसलिये गलत लगो के प्रेरणा से गलत रास्ते पर चलना उसकी मजबूरी बन गई है। आज बढ़ते अपराध में देश का युवा ज्यादा शामिल हो रहा है। युवा देश के विकास के लिये रोशनी का काम कर सकते है लेकिन जब युवा ही अंधकार में हो तो कैसे किसी को रोशनी दिखा सकता है। आज भारत के किसी राज्य के केंद्रिय कारागार मे जाके देखे तो युवा वर्ग सबसे ज्यादा है। इन युवाओ को अपराध से दूर करना ही मेरा लक्ष्य है।


कैसे करे युवाओ को अपराध से दूर?


अगर देश का युवा अपराध कि ओर बढ़ रहा है तो इसके लिये युवाओ को जिम्मेदार ठहराना ठीक नही होगा इसमे जिम्मेदार है देश की शिक्षा व्यवस्था, परिवार औऱ समाज युवा की जड़ है उसके परिवार में उसके माता पिता जिसे अच्छे संस्कारों से और अच्छे आचरणों से सींचा ही नही जा रहा माता पिता का बच्चो के साथ लचीला व्यवहार उनके जड़ को ही कमजोर कर रहा है। और यही युवा समाज मे निकल कर फिर समाज के अन्य युवाओं को गलत दिशा दिखा कर समाज को दुषित कर रहे है। देश की शिक्षा व्यवस्था केवल किताबी ज्ञान तक ही युवाओं को समेटे हुए है जिसके पुरा होने के बाद युवा नौकरी पाने की अंधी दौड़ मे इतना दौड़ रहा होता है की थकावट और तनाव का शिकार हो जाता है। यही तनाव युवाओं को समाज में नशा और व्यभिचार की ओर ढकेल रहीं है। इसी तनाव में युवा आके अज्ञानता वश अपराध मे खुद को शामिल कर अपना सारा जीवन बर्बाद कर रहा है।


अगर हम ये चाहते है की युवा अपराध में लिप्त ना हो तो सबसे पहले इसकी शुरुआत परिवार मे माता पिता से करनी होगी माता पिता को अपने बच्चो पर सतर्कता और सावधानी से ध्यान रखने की जरुरत है। युवाओं को बचपन से ही आध्यात्म का ज्ञान दिलाने की ओर प्रयास करना होगा समाज में एसे लोग जो आध्यात्म ज्ञान को दे रहे है उनसे जोड़ कर युवाओं का बौद्धिक विकास करना होगा। शिक्षा व्यवस्था को एसा बनाना होगा जिससे युवाओ का किताबी ज्ञान के साथ-साथ संपूर्ण सर्वांगीण विकास हो सके। इस दिशा मे यदी कार्य करे तो युवाओं का अपराध कि ओर झुकाव कम हो जायेगा और एक जागरुक युवा देश के विकास में अपना बेहतर योगदान दे पायेगा।