महिला मजदूर: भयावह चुनौतियों के साये में मज़बूर जीवन

(दिल्ली एवं ग्रेटर नोएडा के निर्माण-क्षेत्र की महिला मजदूर के साथ अनुभव पर आधारित )


महिला मजदूर अधिक शोषण किया जाता है। उन्हें अपने श्रम का सम्पूर्ण व उचित मुआवजा नहीं मिलता तथा उन्हें हेय दृष्टि से भी देखा जाता है। साथ काम कर रहे मजदूरों का व्यवहार भी ठीक नहीं होता है। ऊपर से ठेकेदार की मनमानी भी उन्हें झेलनी पड़ती है। पुरुषों के साथ समान रूप से कार्य करने वाली मजदूर महिलाएँ कहीं-कहीं पुरुषों से अधिक परिश्रम करती देखी जाती हैं। जैसे-मिस्त्री बैठकर कन्नी हिलाता रहता है और स्त्री मजदूर जगाड़ी भर-भर कर ढोती रहती है। अधिक परिश्रम करते हुए भी न तो उसे अधिक सुविधा ही मिलती है और न ही अच्छी मजदूरी है। बीड़ी पीने के बहाने सुस्ताने वाला पुरुष श्रमिक भी स्त्री श्रमिक को जल्दी-जल्दी काम करने का भाषण देता है।शोषण की शिकार मजबूर मजदूर-औरतों को बच्चा पैदा करने के लिए भी मजबूर किया जाता है और अपने दुधमुंहे बच्चे को किसी पेड़ की छाया में रोता-बिलखता छोड़ शाम के भोजन को पाने के लिए कड़ी धूप में मेहनत करती मजदूर स्त्री यह जानती है कि यदि मिस्त्री या ठेकेदार असन्तुष्ट हो गए तो अगले दिन उसे मजदूरी मिलने से रही। पेट के कारण कभी-कभी उसे दैहिक शोषण का शिकार भी होना पड़ता है। घर में पति के बेरुखे व्यवहार से जूझती हुई मजदूर स्त्रियाँ इसी प्रकार शोषित होती चली जाती है। स्त्री की अपेक्षा चौगुना कमाने वाला मजदूर पुरुष अपनी कमा. अधिकांश भाग शराब और जुए की भेंट चढा देता है  अन्तत: औरतों द्वारा कमाया गया भोजन मारने-पीटने का अधिकारी भी बनता है। म के हर वर्ष होते बच्चे और हर बार कमजोर पर उसे जल्दी ही वृद्ध बना देता है। पुरुष के शोषण शिकार मजदूर स्त्री जब वृद्धावस्था में पाँव रखती है इसका जीवन और भी दयनीय हो उठता है।मजदूरी  मिलनी बन्द हो जाती है तथा कई भयानक बीमारी उन्हें घेर लेती हैं।मजदूर स्त्री पर जितने काम लादे जाते हैं वह मजदूर पुरुष से अधिक हैं फिर भी यह समझ में नहीं आता है कि क्यों आज भी उन्हें पुरुषों से कम मजदरी दी जाती है ? यद्यपि कानुनन यह उचित नहीं है। संविधान और कानून समान पद, समान वेतन की गारंटी देते हैं। मगर देखा जाए तो मजदूर स्त्री आज भी इस भेदभाव का शिकार है। इसके अलावा हर वर्ष प्राकृतिक प्रकोप के कारण काम कभी मिलता है कभी नहीं कभी काम के लिए दूर-दराज तक जाना पड़ता हो इस अनिश्चितता भरे जीवन के हर पल संघर्ष के साथ जीना पड़ता है। एक प्रकार से ये खानाबदोश की जिन्दगी बसर करते हैं। इन परेशानियों के बीच महिला मजदूरों को अधिक जूझना पड़ता हैकी त्यों बनी रहती है। कुपोषण पनपता है। अभाव से अपराध का जन्म होता है। अंगुठाछाप रहने की परम्परा मजदूर स्त्री की स्थिति को अधि सोचनीय बनाए रखती है, जितनी तनख्वाह रजिस्टर में अकित की जाती है, उतनी नहीं दी जाती है।


 स्त्री के श्रम का उपहास उड़ाता पुरुष उसकी विवशता का भरपूर फायदा उठाने से नहीं चुकता। स्त्री चाहे बाहर जाकर काम करे या किसी के पर का चौका-बर्तन, उसकी स्थिति यथावत् ही रहती है। बंधवा मजदूर प्रथा के अन्तर्गत भी पूरा परिवार बंधक होता है और वहाँ भी स्त्री ही शोषित होती है  स्त्री का पति भी बादशाह से कम नहीं को अपने घर में वह खुद भी एक मालिक होता है। दिनभर की थकी-हारी पति के व्यवहार से खिन्न होकर जब विरोध करना चाहती है तो पति शोषक बन जाता है। इस प्रकार पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को अधिक यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं। कही-कहीं ऐसा भी देखा जाता है। कि पति, पत्नी की कमाई पर बैठे-बैठे रोटियाँ तोडता है और शराब-जुए का अपने जीवन का अंग बना लेता है- इसी कारण पत्ता क साथ मारपीट गाली गलौच भी करता रहता है। अगर पत्नी विरोध करती है तो उसके चरित्र पर लांछन लगा देता है। इस प्रकार मजदूर स्त्री का दोहरा शोषण होता है बाहर और घर में भी । आज गाँव से लेकर शहर तक, बचपन से वृद्धावस्था तक यदि हम आकलन करें तो नारी जाति का शोषण हो रहा है, जो न सिर्फ यौन स्तर पर वरन् उसके श्रम का भी अवमूल्यन किया जा रहा है जो मानवता के नाम पर उपहास है। क्या नारी जन्म अभिशाप है? मर्यादा के नाम पर निरक्षरता के नाम पर दहेज के नाम पर शोषण हमारे अमानवीय रूप को उजागर करता है।मजदूर औरतें यह सोचती हैं कि पति के अत्याचारों से तंग आकर पति का घर त्याग भी देगी तो उसे समाज द्वारा अपमानित और लाछित होना पड़ेगा उनके चरित्र पर उगलियाँ उठाई जाएंगी। महिलाएँ, पुरुषों के समान कार्य करती हैं किन्तु मजदूरी के नाम पर बराबरी का कोई दर्जा नहीं मिलता।


अशिक्षित होना ही मजबूर स्त्री के लिए शोषण का कारण बनता है। शिक्षित या अशिक्षित दोनों ही क्षेत्र में नारी रोजगार है पर फिर भी मजदूर स्त्री अधिक शोषण का शिकार होती है। इसका प्रमुख कारण रोजगार की अनिश्चितता है। अगर ठेकेदार के अनुचित व्यवहार का विरोध करती है तो उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ता है। मजदुर स्त्री पर हो रहे इस शोषण को पूरी तरह नष्ट किया जा सकता है उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे लाने की कोशिश करनी होगी। शिक्षित महिलाएँ भी शोषण की शिकार हो सकती हैं पर प्रतिशत की तुलना में कम क्योकि अपने बुद्धिबल से वह प्रतिवाद के शब्द प्रयोग में ला सकती है। स्त्रियों की सेवा में लगी हुई संस्थाएँ अगर आगे आएँ और ग्रामीण तथा मजदूर महिलाओं को शिक्षा प्रदान करें तो शोषण कुछ हद तक कम हो सकता है।