तिहाड़ दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे बड़ी जेल है जहां 11,000 कैदी है11,000 में से लगभग 500 महिला कैदी हैं यानि कि दोषसिद्ध और विचाराधीन। किसी एक समय में ऐसे लगभग 60 बच्चे अपनी माँओं के साथ होते है जिनकी उम्र 6 साल से कम होती है। इन जेलों में से केवल एक में एक महिला वार्ड था। 3 जून, 2000 को महिलाओं के लिए अलग जेल बन गई। जिस दिन इस जेल का उद्घाटन किया गया, उस दिन हमारे यहां 500 से अधिक महिला जेल वासिनी थीं।
तिहाड़ मानव अधिकारों और मूल्यों का अग्रदूत रहा है। मूलरूप से तीन तरह से उनके पुनर्वास और सुधार का काम देखते हैं। पहला है गैर-सरकारी संगठनों के रूप में बाहरी समुदाय को जेल के अंदर लानाये उन बच्चों के लिए शिशुगृह चलाते है जो अपनी माँओं के साथ हैं, महिला कैदियों को परामर्श देते हैं, उन्हें पढ़ाते हैं और व्यवसायिक प्रशिक्षण देते हैं। इसके अलावा, ये गैर सरकारी संगठन मनन-प्रार्थना में भी हमारी सहायता करते हैं। तिहाड़ जेल में हमारे पास विपासना, जीने की कला-बहमकुमारी ईश्वरी आश्रम और अन्य बहुत से मनन-प्रार्थना कार्यक्रम हैं। इसका कैदियों के मनों पर बहुत असर पड़ा है। मैंने इन पाठ्यक्रमों को पूरा करने के बाद कैदियों को रातों-रात बदलते देखा है। मनन प्रार्थना कार्यक्रम का बहुत ही असर महिला जेल में देखने को मिलता है। महिलाएं पहले से ज्यादा शांत स्वभाव की हो गई हैं, वे अपने काम में दिलचस्पी लेने लगी हैं और वे उतनी आक्रामक नहीं है जितनी वे तब थीं जब जेल में आई थी।
दूसरा है जेल के अंदर कैदियों का एक समुदाय बनाना। कैदियों को, जेल से बाहर उनकी आर्थिक स्थिति के आधार पर, नहीं बाँटा जाता। उन्हें बस एक साथ रखा जाता हैं दोषसिद्ध कैदी और विचाराधीन कैदियों को अलग-अलग रखा जाता है। हां, वेश्यावृत्ति आदि में शामिल औरतों को अलग रखा जाता है। उन्हें अन्य कैदियों के साथ मिलने की अनुमति नहीं दी जाती। न्यायमूर्ति अय्यर द्वारा दी गई सिफारिशों में से यह भी एक है।
प्रशिक्षण एवं शिक्षा और साक्षर बनाना इसके अलावा, हमारे यहां इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय की शाखाएं है जिनमें महिलाएं प्रशिक्षण कक्षाओं में भाग लेती हैं अधिकांश प्रशिक्षक महिला कैदी ही होती हैं।हम सिलाई, बुनाई, पापड़ बनाने, अचार बनाने, चित्रकला और चित्र बनाने का भी व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है जिसके तहत औरतों को मजदूरी भी दी जाती है। न्यायमूर्ति अय्यर ने कहा था कि उन्हें बाजार दर पर भुगतान किया जाना चाहिए।