हिरासत में महिलाओं की सामाजिक पृष्ठभूमि


कौन हैं महिला अपराधी तथा किन्हे बनाया जाता है बन्दी?


महिला कैदियों की पृष्ठभूमि पुरूष कैदियों की पृष्ठभूमि से पूरी तरह भिन्न होती है। महिला कैदियों की पृष्ठभूमि से पता चलता है कि उनमें से अधिकांश समाज के गरीब, वंचित वर्गों की होती है। वे प्रायः गरीबी, सांस्थानिक शक्तिहीनता, उत्पीडन और सामान्य अनभिज्ञता के कारण अपराध करती है। अधिकांश मामलों में महिलाएं ऐसे अपराधों के लिए 15 वर्ष बन्दीगहों में रहती हैं जिनमें वे दोषी पाई जाती तो उन्हें बहुत कम सजा मिलती। दुःखद तथ्य यह है कि अधिकांश महिला कैदी विचाराधीन कैदी होती हैं जो अपना बचाव नहीं कर सकती और उचित कानूनी सहायता लेने का खर्च वहन नहीं कर सकीं पुरूषों की तरह महिलायें हिंसक और गम्भीर अपराध नहीं करती और न ही वे पुरूषों की तरह बार-बार अपराध करती हैं इसके अतिरिक्त जब उन्हें बन्दीगृहों से रिहा किया जाता है तो वे फरार भी बहुत कम होती हैं।


सुधार गृहों में किस प्रकार की महिलाएं आती हैं?


 इन संरक्षण गृहों में महिला को आमतौर पर जिन कारणों से लाया जाता है वे हैं : (क अनैतिक व्यापार और आवारागर्दी, (ख) दहेज मृत्यु/हत्या सुनवाई के मामले और (ग) निस्सहाय/परित्यक्त अवयस्क बालिकाएं। उनका 'अपराध' यह होता है कि वे समाज द्वारा शोषण और दुर्व्यवहार का शिकार होती हैं: वे गरीब और परित्यक्त होती हैं जिनकी आजीविका का को ई साधन और सहारा नहीं होता: वे अपराध का शिकार होती हैं और उन्हें सुरक्षा की जरूरत होती है। वे एसी महिलाएं होती हैं जो सरकार और समाज से रक्षा की अपेक्षा करती हैं। उनका पुनर्वास करने की जरूरत होती है। फिर भी तथ्य यह है कि शोचनीय दशा के कारण ये घर वपसी का उद्देश्य कदाचित ही पूरा हुआ हो ।  


 महिला बन्दियों की आवश्यकताएं पुरूषों की आवश्यकताओं से भिन्न हैं।


 संवेदनशील अधिकारियों को यह तथ्य समझना चाहिए। महिलाओं की भौतिक और शारीरिक आवश्यकताएं भिन्न हैं। इसी प्रकार उनकी मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएं भी भिन्न हैं। महिलाएं जब बन्दीगृह में होती हैं तो उन्हें अपने परिवारों विशेष रूप से अपने बच्चों की याद आती है। यही कारण है कि वे चिन्ता करती हैं और उदास हो जाती हैं। उन्हें मिलने वाले बहुत कम आते हैं और उन्हें प्रायः अपने परिवार का कोई समाचार नहीं मिलता। इस से जेल में बंद महिलाओं की हिम्मत बुरी तरह टूट जाती है और इस तथ्य की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जे० एस० वर्मा ने जोर देकर कहा कि बन्दीगृहों के अधिकारियों को इस प्रकार पेश आना चाहिए कि बन्दीगृहों में, थानों में तथा अन्य स्थानों पर जहां उनकी हिरासत में महिलाओं से बातचीत होती है, महिलाओं के अधिकार और प्रतिष्ठा बनी रहे। अतः सब से अधिक आवश्यकता आचार-व्यवहार को बदलने की है ताकि कानूनों को अमली जामा पहनाया जा सके। उन्होंने कहा कि इस समय आवश्यकता बन्दीगृहों में सुधार सम्बन्धी नियमों के बेहतर क्रियान्वयन की है। नये से नये कानून बनाने की आवश्यकता नहीं है विद्यमान कानूनों को पूरी तरह लागू करना होगा


हास्यास्पद बात यह है कि तपेदिक जिसका इलाज हो सकता है. जेलों में मौत का एक मुख्य कारण है ।जेलों में  सख्या बढ़ती जा रही है जबकि भीडभाड. कपोषण और चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है। यद्याप सामायक और उचित स्वास्थ्य देखभाल  बन्दी का जन्मजात अधिकार है।