व्यक्ति को जो बंदीगृह में जाता है उसे हानि पहुंचती है लेकिन विशेष रूप में महिलाओं के मामले में एक स्त्री मन के हानि के साथ साथ पूरे परिवार व समज को तबाह करती है। जो अपने परिवारों में धुरी के रूप में अपनी भूमिका निभाती हैं महिलाओं को बन्दी बनाने से उन पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका विस्तृत अध्ययन करने की आवश्यकता है। इसके साथ बन्दीगृहों के विकल्पों पर भी विचार किया जाये। समाज सेवा एक अच्छा विकल्प है और इसको क्रियान्वित किया जा सकता हैइस प्रकार एक महिला, एक अपराधी, समाज से नहीं टूटता; बल्कि इस प्रणाली से महिला को समाज में शामिल होने और समाज से जुड़ने में सहायता मिलती है। समाज के साथ उसका सम्पर्क बना रहता है और बंदीगृह में बन्द रहने के हानिकारक प्रभाव को नियन्त्रित करने में यह एक महत्वपूर्ण निमित्त है
किसी समाज में दाण्डिक न्याय प्रणाली दैनिक जीवन में महिलाओं के प्रति हमारे रूख का प्रतिबिम्ब है। कानून और न्याय शून्य से पैदा नहीं होते हम जितने कानून चाहें बना सकते हैं। हम न्यायालय के निर्णय भी प्राप्त कर सकते हैं किन्तु वे शून्य में मौजूद नहीं रह सकते हर निर्णय, हर कानून दैनिक जीवन में महिलाओं के प्रति हमारी मनोवृत्ति का प्रतिविम्ब है। अतः कानूनी ढांचे से वातावरण का सृजन करने के लिए हमें न्यायालय से बाहर जाना होगा। यह तथ्य स्वीकार करना होगा कि विधि और न्याय तंत्र में महिलाओं के अनुभवों का लाभ उठाना आवश्यक है न्यायाधीशों, विधि-निर्माताओं, पुलिस अधिकारियों और बंदीगृह स्टाफ को यह तथ्य स्वीकार करना होगा।