नारी को किससे और क्यों चाहिए आज़ादी

 


1947 से पूर्व स्वातंत्रता की लड़ाई विदेशी हुकूमत द्वारा किये गये भेद- भाव एवं अत्याचार से  मुक्ति पाने के लिये की गयी थी, जिसमें महिलाएँ भी सम्मिलित है को समानता के आधार पर सम्मानित जीवन यापन का अधिकार प्राप्त हो सके। आज जन संविधान द्वारा महिलाओ को समान अधिकार प्राप्त हो चुके है उन्हे स्वतंत्रता किससे और क्यों  चाहिए  कारण स्पष्ट है कि आज भी  वे लिंगभेद व शोषण का शिकार है। पोषण भोजन शिक्षा स्वास्थ्य आदि सभी क्षेत्रों में समाज का एक बड़ा तबका लड़कियों को कम महत्व देता है। उनके कंधों पर घर गृहस्थी के कार्य का बोडा डाल दिया जाता है। जो आयु उसके हेंसने-खेलने तथा स्कूल जाने की होती है उसके हाथ में झाडू-पोछा चूल्हा-चोका  पकड़ा दिया जाता है। आंकड़े बताते है कि 10 से 14 वर्ष की आयु में एक बालिका सात या अधिक घंटे घरेलू कामकाज मे लगाती है। परिवार में लड़की का आगमन अमंगल सूचक तथा विवादमय है। और तो और उससे जन्म लेने का आधिकार भी छीना  जा रहा है ।बालिका भूर्ण की जांच करवाते है । ये समज के लिए शर्म की बात है । पुरुषो की तुलना में महिला अनुपात कम है।


अनेक कानुन बनने के बाद भी महिला स्वतन्त्रता दिन-प्रति-दिन गर्त में जा रही है। आर्थिक दृष्टि से महिलाओं की स्थिति और भी अधिक शोचनीय है। महिलाओं द्वारा किये गये कार्यों का मुद्रा में मूल्यांकन ही नहीं किया जाता है। प्रत्येक महिला सुबह से शाम तक घर गृहस्थी की चक्की में पिसती रहती है। उसका कार्य सुबह  की पहली किरन से शुरू होता है और रात्रि होने पर ही समाप्त होता है। ग्रामीण महिलायें इन कार्यों के अतिरिक्त पशु-पालन दूध निकालना, कंडे थापना, ईंधन इकट्ठा करना, खेती के काम  में सहायता करना आदि कार्य भी करती हैं। यदि रु. प्रति दिन न्यूनतम मजदूरी के माप दंड को लिया जाये. जो केवल आठ घंटे कार्य के लिये निर्धारित की गयी है, तो प्रत्येक महिला 1500 रु. महीने का कार्य तो करती है। ओवर टाइन अलग।समान कार्य के लिये समान वेतन अधिनियन है किन्तु महिलाओं को पुरुषों से कम मजदूरी दी जाती है। अधिकांश महिलायें अकुशल अनिक के रूप में अव्यवस्थित व्यवसायों में कार्यरत हैं। व्यवस्थित व्यक्त्ताों ने महिलाओं की संख्या नगण्य है। वर्तमान समय में विदेशी प्रतियोगिता तथा विश्वीकरण की अन्धी दौड़ के कारण उद्योगों और व्यवसायों का मशीनीकरण व आधुनिकरण जिस तेजी से ही रहा है महिला श्रमिकों के रोजगार के अवसर पहले से कम हुये हैं । अब प्रश्न राजनीतिक स्थिति का नीति निर्धारण में औरतों का योगदान नाम मात्र का  है।लंबे समय  से राजनीतिक क्षेत्र में आरक्षण की बात की जा रही है लेकिन किसी न किसे बाहने आरक्षण बिल को टाल दिया जाता है । हिन्दू उत्तराधिकार नियम के अनुसार पुत्री को पिता की सम्पत्ति में बराबर का हक है किन्तु क्या औसतों को यह अधिकार प्राप्त है  उत्तर नकारात्मक है । माता पिता स्वेत्छा  से उत्तराधिकार क्यों नहीं देते।


 यह सही है कि चन्द महिलायें उद्योगों, व्यवसायों तथा सार्वजनिक सेवाओं में पुरुषों से भी आगे निकल गयी हैं किन्तु समस्या की गम्भीरता तब स्पष्ट होती है जब हम महिलाओं की स्थिति का मूल्यांकन देश की पचास प्रतिशत जनसंख्या में करते हैं।