महिलाएं किसी अन्य पर निर्भर न रहें,अपनी सुरक्षा आप करें



भारत के लोकतंत्र में विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और पत्रकारिता ये चार स्तंभ है जिनकी अपनी-अपनी स्वतंत्रता है औऱ सम्मान भी इन्ही चार स्तंभ पर भारत के लोकतंत्र की नीव टिकी हुई है अगर एक भी लड़खड़ा जाये तो भारत के लिये खतरा ही होगा।  ये बात सच है कि हमारे संविधान में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिए गये है| पर वर्तमान में महिला सुरक्षा एक विकराल समस्या बन चुकी है| इक्कीसवीं सदी में भी हम नही कह सकते की हमारे देश में महिला सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है।  2 नवंबर शनिवार 2019 को दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट परिसर में वकीलों औऱ पुलिसकर्मियों के बीच पार्किंग को लेकर विवाद शुरु हुआ. देखते ही देखते यह हिंसक हो गया.   दिल्ली पुलिस और वकीलों के बीच संघर्ष से जुड़ा एक सनसनीखेज वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें डीसीपी नार्थ मोनिका भारद्वाज हाथ जोड़े खड़ी नजर आ रही हैं और वह वकीलों से शांत होने की अपील करती दिख रही हैं,जबकि  बड़ी संख्या में वकील हमलावर अंदाज में दिल्ली पुलिस की महिला डीसीपी की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। बताया जा रहा है कि बड़ी संख्या में वकीलों ने महिला डीसीपी के साथ दुर्व्यवहार किया था और उन्हें धक्का देकर जमीन पर गिरा दिया था। हिंसा के दौरान उसके साथ मारपीट की गई. इतना ही नहीं महिला अधिकारी ने यह भी कहा कि इस बीच उनकी सर्विस रिवाल्वर भी छीन ली गई। ऐसी  घटनाएँ समाज को  केवल शर्मसार ही करती हैं । आज  महिला सुरक्षा खतरे में है। चाहे ग्रामीण इलाके हो या शहरी; चाहे वे शिक्षित हो या अशिक्षित| सभी किसी न किसी प्रकार का उत्पीडन सहने के लिए बाध्य है| महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नही है वह न घर पर न बाहर |


हद तो तब हो गई जब भारत की राजधानी दिल्ली के  न्याय -मंदिर में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा की रिपोर्ट लिखने वाली महिला पुलिस ऑफिसर जब स्वंम हिंसा की शिकार हो जाएँ तो आम औरतों को  कौन, कैसे और कहाँ भरोसा दिलाया जाए उसके सम्मान व सुरक्षा की । महिला अधिकारों के लिए आसपास की सधी चुप्पी टूटनी जरूरी है। महिलाओं को आगे आना ही होगा . यही तो बदलाव की पहली शर्त है. आगे रास्ता तो ख़ुद व ख़ुद तय हो ही जाएगा