महिला और अपराध....

 महिलाओं के प्रति राजधानी में बढ़ते अपराध की चर्चा पहले आंकडों से शुरू करते हैं। दिल्ली सरकार और केंन्द्र सरकार के संगठनों की ओर से कराए गए सर्वेक्षणों में बताया गया है कि पिछले दशकों में दिल्ली में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों में खासी बढोतरी हुई है। बढोतरी से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि सरकारी आंकड़ों में यह बात मानी गई है कि देश के सभी महानगरों में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित दिल्ली है यानी यहां महिलाओं के प्रति सबसे ज्यादा अपराध होते हैं। अभी कुछ घटनाएं लगातार हुई हैं तो इस पर चर्चा होती है, लेकिन इनसे दिल्ली में होने वाले अपराधों का पूरी तरह पता नहीं लगता है। राजधानी में महिलाओं के प्रति जो अपराध होते हैं, उनमें से ज्यादातर तो थानों तक पहुंच ही नहीं पाते हैं और जो पहुंचते हैं उनमें से भी बहुत कम दर्ज हो पाते हैं, उनमें कितने मामलों में कार्रवाई होती है यह कोई नहीं बता पाएगाज्यादा मामले दब जाते हैं और आम लोगों के मामले आ ही नहीं पाते हैं। दिल्ली में महिलाओं के प्रति अपराध से आगे बढ़ कर हमें इस बात पर चर्चा करने की जरूरत है कि यंहा महिलाओं के प्रति अपराध की सीमा क्या है यानी कितना अपराध हो सकता है?


जब राजधानी में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, हवा और पानी दोंनो प्रदूषित हो जाते हैं तो पर्यावरण का स्वास्थ्य सुधारने के लिए सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल देता है और इसमें सुधार की कोशिश करते है। जब राजनीतिक दलों का महौल बिगडता है उनके यहां का प्रदूषण सामने आने लगता है तो राजनीतिक दल आपस में बैठ कर उस पर विचार करते हैं और सुधार की कोशिश करते हैं। लेकिन जब महिलाओं के प्रति अपराध होता है और शहर का नैतिक माहौल प्रदूषित होता है तो चारों तरफ एक खामोशी क्यों छा जाती है? सरकार व्यवस्था आदि के साथ इस मुद्दे नागरिकों की खामोशी महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध के लिए खासतौर पर जिम्मेदार है।


शहर की खामोशी को तीनों बातों में देखा जा सकता है।


सबसे पहले तो पुलिस का रवैया। अगर कोई व्यक्ति किसी महिला के प्रति हुए अपराध को लेकर पुलिस के पास जाता है तो उसे भी शक की निगाह से देखा जाता है और कई बार बिना पड़ताल किए उसी वक्त बंद कर दिया जाता है। महिलाएं अगर खुद शिकायत लेकर जाती है तो उन्हें पछताना ही पड़ता है। पुलिस वालों का रवैया इतना असहयोग का होता है और उन पर ऐसी फब्तियां कसी जाती हैं कि कोई महिला थाने में जाकर रिपार्ट दर्ज कराने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है। 


दूसरे, महानगरों में अपने ही खोल में सिमटते जाने की प्रवृत्ति का बढ़ना इसके लिए जिम्मेदार है। नौकरीपेशा या व्यवसाय करने वाने लोग भी यह सोचते हैं कि कौन इस लफडे में पड़े मेरे साथ तो नहीं हो रहा है। सब अपने को सुरक्षित रखने में जुटे हैं।


तीसरी बात, राजनीति और सामाजिक व्यवस्था की अकर्मण्यता भी इसके लिए जिम्मेदार है। अपने निजी और तात्कालिक लाभ के लिए राजनेताओं ने राजनीति में गंभीर सामाजिक मुद्दे के लिए जगह ही नहीं छोड़ी हैं।


अब सवाल है कि कथित रूप से सक्षम पुलिस की नाक के नीचे महिलाओं के प्रति अपराध में बढोतरी क्यों हुई? इसकी वजह तलाशने के लिए किसी ऐतिहासिक तथ्य की पड़ताल से ज्यादा जरूरी है भूमंडलीकरण की मौजूदा प्रवृति की पड़ताल करने की। उदारीकरण व भूमंडलीकरण के मौजूदा दौर में औरत के शरीर कर इस्तेमाल वस्तु बेचने के लिए किया जा रहा है और इस प्रकिसा में औरत का शरीर भी एक वस्तु बन गया है। व्यापार के मौजूदा सिद्धांत में मुनाफा कमाना सबसे मुख्य लक्ष्य है। मार्केटिंग की ताजा अवधारणा ने स्थापित किया है कि सबसे आसानी से बिकता है सेक्स। इसलिए बाजार ने सेक्स को इंसानी रिश्तों और जज्बात से अलग कर इसको एक ऑब्जेक्ट के रूप में बेचना शुरू कर दिया। जब सेक्स ऑब्जेक्ट रूप में बिकेगा तो जाहिर है कि उसे प्रोमोट करने के लिए स्त्री शरीर का अधिकतर इस्तेमाल किया जाएगा।


महिलाओं के प्रति जो अपराध बढा है, वह अभी ज्यादातर महानगरों और शहरों तक सीमित है। लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं है कि ग्रामीण इलाकों या कस्बों में महिलाएं सुरक्षित हैं। वहां यौन शोषण के आंकडे और ज्यादा भयावह हैं। ग्रामिण इलाकों के 99 फीसदी मामले सामने नहीं आ पाते हैं। वहां यौन शोषण यानी महिलाओं के प्रति अपराध की वजह मजबूरी है। ठेकेदार, जमींदार लोंगों की मजबूरी का फायदा उठा कर महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। दूसरे, सिर्फ बलात्कार को महिलाओं के प्रति अपराध नहीं माना जा सकता है। इसके अलावा भी इस अपराध के कई रूप हैं। महिलाओं के साथ छेडछाड, उन पर फब्तियां कसना, उनकी मौजदगी में अश्लील चटकले सनाना या अश्लील गाने गाना ये सब महिलाबों के प्रति अपराध की श्रेणी में आते हैं। ग्रामीण इलाकों और कस्बों में ये काम खुलेआम होते हैं।


यह मिथक है कि पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं के साथ छेडछाड की घटना कम होती हैं, लेकिन इसकी भी हकीकत कुछ और हैदिल्ली में और केंद्र सरकार के दफ्तरों में काम करने वाली महिलाओं के साथ बदसलूकी की जाती हैबहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तरों में ऐसी घटनाएं होती हैं। ऐसे में शिकायत करने वाली महिला की क्या स्थिति होती है, इसकी कल्पना की जा सकती है। विशाखा केस में अगस्त 1997 में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया था। इसमें कहा गया था कि सभी दफ्तरों में महिलाओं की निजता और उनके सम्मान को क्षति पहुंचाने वाली बातों की सूची लगाई जाए। दफ्तरों में शिकायत का प्रकोष्ठ बने। लेकिन शायद ही इसे कहीं क्रियान्वित किया गया है। केंद्र सरकार के दफ्तरों में महिला कर्मचारियों को नहीं पता है कि शिकायत कक्ष कहां है। उनके क्या अधिकार हैं और सहयोगी का कौन सा बरताव यौन उत्पीडन की सूची में आता है, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं। लेकिन अब महिलाओं ने इन सारी बातों के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दिया है। हालांकि यौन उत्पीडन कम नहीं हुआ है, लेकिन अब पहले की तरह महिलाएं चुप नहीं हैं। यह अच्छी स्थिति है। अब महिलाएं आगे आकर शिकायत कर रही हैं और अपनी लड़ाई लड़ रही हैं। आने वाले दिनों में विरोध जारी रहने से हालात में हो सकते हैं। क्योंकि महिलाओं के निरंतर विरोध से समाज की निरंतर विरोध से समाज की खामोशी भी टूटेगी और सरकार में बैठे लोग भी सुधार के लिए बाध्य होंगे।


राजनेता और सरकार की जिम्मेदारी के साथ-साथ समाज का आम नागरिक भी जिम्मेदार है। जब तक नागरिकों की यह चुप्पी नहीं टूटेगी तब तक जमीनी स्तर पर सुधार की गुंजाइश काफी कम है।  सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा की चलते उनका स्वभाव बदल रहा है। इसकी वजह क्या महिलाओं पर बढ़ते अपराध है?


महिलाएं भी अपराध कर सकती हैं या अपराधों में शामिल हो सकती है यह चौकाने वाला विषय इसलिए भी बन गया है कि हमारे सामाजिक परिवेश में महिलाओं से ऐसी कभी अपेक्षा नहीं की जाती। लेकिन आज दिल्ली की जेल में महिला कैदियों की बढ़ती संख्या और अपराधों के आंकड़े इसके गवाह है कि महिलाएं भी अपराध करने लगी है। दस्यु सुंदरी फूलन देवी को उस पर औरउसके परिवार पर हुए बर्बर अत्याचार ने खूखार डाकू बना दिया लेकिन भारतीय इतिहास में महिलाओं के खुंखार होने के किस्से कम ही सुनने को मिलते है। फिर आज क्या वजह है? इस गंभीर विषय पर आज तक कभी संगोष्ठी और शोध नहीं हुआ। यह विषय केवल चिंता का विषय न बने बल्कि चर्चा का विषय भी बने। महिला का स्वभाव समाज का स्वभाव बनाता है। लिहाजा इस विषय पर भी गहन चिंतन और चिंता करने की आवश्यकता है।