एसिड अटैक

मानव हत्या से भी बड़ा और घिनौना अपराध



Photo: Facebook/stopacidattacks


एसिड हमले की समस्या आज न केवल भारत में बल्कि दक्षिण एशिया के कई देशों में गम्भीर समस्या के रूप में उभरी है।समस्या की गम्भीरता को देखते हुए वहां इसके खिलाफ एक्ट भी बना है तथा इसे हत्या के बराबर का अपराध माना गया है। अभी इन मामलों में सामान्य धाराओं के आधार पर हो मुकदमा दायर होता है और जजों के जजमेंट ही नजीर बनते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना है कि यह मानव हत्या से भी बड़ा और घिनौना अपराध है। दिल्ली में एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस जी.पी. माथुर तथा जस्टिस बालसुब्रह्मण्यम की पीठ ने सरकार को सुझाव दिया है कि वह इस अपराध के खिलाफ कानून बनाए, ताकि अपराधी को सख्त सजा दी जा सके। एसिड हमले के कु प्रभावों पर हुए अध्ययन बताते हैं कि कैसे यह पीडित व्यक्ति को एसिड बाहर से अन्दर तक जला देता है, हड़ियां भी कमजोर हो जाती हैं, आंखों पर एसिड पड़ा हो तो दृष्टि चली जाती है बार-बार ऑपरेशनों के दौर से गुजरने से प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तथा जिन्दगी भर के लिए चेहरा और शरीर विकृत हो जाता है। इसका इलाज भी काफी महंगा होता है तथा आम घर की पीड़िता इलाज करने में लगभग अक्षम होती है। एसिड हमला यह स्त्री विरोधी विचार की सबसे क्रूर अभिव्यक्ति है।  इस मामले में पीड़ितों ने अपना समूह भी बनाया है। 'बर्न सरवाइवर गुप आफ इण्डिया' ऐसा ही एक ग्रुप है जिसके सदस्यों की एकता का आधार एक ही है, एक ही तरह के हमले का शिकार होना। बीस साल की हसीना हुसैन पर 1999 में उसके पूर्वनियोक्ता जोसफ रोड्रिक्स द्वारा किए गए हमले का मामला समूचे राज्य में चर्चित हुआ था। पांच साल बाद 18 सर्जरी एवं 6 लाख रुपए। खर्च किए जाने के बाद भी हसीना पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी। उसकी हार्थों की उंगलियां जड गयी है। आंखों की रोशनी भी पूरी तरह लौटी नहीं थी। उसका हमलावर जोसेफ पांच साल की सजा काट कर और तीन लाख रुपए जुर्माना देकर लौट आया लेकिन कम से कम इस मामले में सजा तो हुई। इस अपराध को अलग-थलग करके समझने से हर केस के लिए अलग-अलग कारण देखने से अपराधी के व्यवहार को गुस्से में, बदले की भावना या फिर मनोरोगी के रूप में देखने-समझने की प्रवृत्ति पायी जाती है। यह समझने की आवश्यकता है कि जो समाज जितना अधिक स्त्रीद्रोही होता है,


हो।महिलाओं को बराबरी नहीं देता है, उतने ही अधिक क्रूर हमले के प्रकार वहां देखने में आते हैं। कहा जा सकता है कि दहेज हत्या, सतीप्रथा, गर्भजलपरीक्षण के जरिए मादाभ्रूण के खातमे या कन्या शिशुओं की हत्या के रूप में स्त्री को जिस बबर किस्म की हिंसा का शिकार होना पड़ता है. उसी में नाम जुड़ गया है एसिड हमलों का। अगर एसिड हमले की समस्या से निजात पानी है तो तात्कालिक तथा दीर्घकालिक दोनों ही स्तरों पर गम्भीरता से प्रयास करने की जरूरत है। तात्कालिक स्तर पर कानून बने, उसे सख्ती से लागू किया जाए, अपराधी छूटने न पाये यह गारन्टी हो, पीडित को हर तरह से मदद मिले। दीर्घकालिक स्तर पर समाज में जनतांत्रिक भावनाओं तथा मूल्यों को मजबूत बनाया जाये तथा नारी का सम्मान फिर वह चाहे किसी भी धर्म, जाति की