नजरिया बदलो

बदलते दौर में लिंग समानता की पहल अब पुरुषों की ओर से


                                      नजरिया बदलो


  


    डॉ. इंदिरा मिश्रा                                                                                     


इस पुरुष प्रधान समाज में हमेशा महिलाओं  को पिछे रखा गाया है। धर्म और संस्कृति के नाम पर महीलाओं को समाज में देवीं का दर्जा तो दिया  गया लेकिन ये बातें सिर्फ केहनें तक ही सीमित रही है। अंधविश्वास के दौर में अब तक समाज जी रहा है। बिहार, झारखंण्ड यू.पी के क्षेत्र तो एसे है जो आज की 21वीं सेंचुरी में भी पुरुष महिलाओं को कमजोर और बेसहारा समझतें हैं।                                  


महिलायें भी अपनें उपर हो रहे अन्याय और शोषण को समझ नही पाति दिनों दिन समाज में खुद पर हो रहें अन्याय को बर्दाश्त करती रहती है। समाज में महिलाओं के साथ बलात्कार, योण शोषण और छेड़-छाड़ की घटनायें इतनी बढ़ गई है की  महिलायें डरी हुई है और आत्मविश्वास से भी कमजोर हो रही है। जिस समाज में महिलायें डरी हुई और घबराई रहेंगी उनका विकास और उनकें अधिकारों की रक्षा कैसे होगी ? आज भी यदी महिलायें आज भी समाज में सुरक्षित नही है तो ये हमारें लियें ही नही पूरी मानव जाति के लियें एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है की महिलाओ के साथ हो रहे अन्याय का कारण क्या है?


जब मैनें कारण जाना तो एक ही कारण सामने आया और वो है समाज में लोगों का गिरता चरित्र। जिसका कारण है अर्थ हीन शिक्षा जो लोगो का बौद्धिक विकास नही  कर पा रही आज की पीढ़ी जानति सब कुछ है लेकिन उनमें सही- गलत का विवेक नही हैं। महिलाओं के सश्क्त करनें के साथ पुरुषों को भी जागरुक करनें की जरुरत है। उनके साथ और समर्थन से सही महीलाओं का सम्मान और उनकी सुरक्षा संभव है। ये बात हमारी संस्कृति भी सीखाती हैं।


पुरुषो के के लियें मेरा संदेश ये ही है की वों बस महिलाओँ के तरफ अपना नजरियां बदलें जब व्यक्ति ये सोचेगा  की आज समाज की जिस बेटी के साथ अन्याय वो रहा हैं वो मेरी बेटी है औऱ बिना डरें बिना रुकें महिलाओँ के साथ मिलकर उसको सश्क्त बनानें का प्रयास करेंगा समाज तो महिलाओं का समाज मे उतना ही आत्मविश्वास बढ़ेगा और वो कुशलता से समाज में मुसकरातें हुए काम करेंगी।


नारिशस्क्तिकरण का चरण बेटी के गर्भ से ही शुरु होना चाहीयें यही पर नजरिया बदलनें की बात कर रही हू मै चाहती हू की पुरुष महिलाओं का हिम्मत बनें और भूर्ण हत्या को करनें की बजायें बेटीयों के जन्म देने के लिये प्रेरित करे। इसकी पेहल में हमनें गंगा की बेटी योजना को चलाया हुआ है जिसमें हम लोगों को बेटी पैदा करनें  के लिये प्रेरित कर रहे है। समाज  के लोगो को प्रेरणा देते हुए हमनें  ये भी कहा है की अपनी तीसरी बेटी होनें पर आप उसे मारें नही बल्की हमें सौपें ताकी उस नन्ही का पालन पोषण हमारी संस्थान करेंगी।  मैं यह कहना चाहती हूँ कि उन्हें पता तो सब होगा परंतु सही-गलत का विवेक नहीं होगा। प्रज्ञाबोध तो माता पिता और शिक्षकों का ही दायित्व है।


पुरुषों के महिला सशक्तिकरण के प्रति दृष्टिकोण को उदार बनाना अत्यंत आवश्यक है। यदि वह ऐसा करते हैं तो वह परिवार में जहां अकेले ही जूझते रहते हैं उसके स्थान पर उन्हें एक ऐसा साथी मिलता है जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों को बांट लेता है।मेरा विश्वास है कि यदि पुरुषों को महिला सशक्तिकरण का हिस्सेदार बनाया जाए तो बहुत लाभकारी परिणाम निकल सकते हैं। इसलिए अधिक से अधिक पुरुष इस कार्य में जुड़ना चाहीयें। महिलाओं के लिए स्वछंद माहौल पुरुषों को ही बनाना होगा ताकि वह अपने पंखों को खोल सके एक ऊँची उड़ान भरने के लिए।


मुझे बेहद प्रसन्नता है कि फिल्मों के जरिये ही सही भारतीय समाज में कुछ स्तर से चर्चा तो शुरू हुई है। पिंक,टॉयलेट,बेगम जान,गुलाबी गैंग,बैंडिट क्वीन जैसी फिल्मों ने भारतीय समाज का आइना दिखाया है।इसी कड़ी में "Pad Man" जैसी फिल्म एक क्रांति है जिसके कई आयाम है।


ऐसे भी पुरुष हुए है और आज भी मै देखती हूँ जो महिलाओं के प्रति सम्मान और बराबरी की सोच रखते है,तो ऐसे पुरुषों के होने का भी भारतीय समाज के भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है जो अपने ही देश के अन्य पुरुषों की सोच से बहुत ऊँचे है।


वक़्त आ चुका है कि हम अपनी खोखली मानसिकता को बदले और देश की आधी आबादी महिलाओं की समस्याओं को समझे और एक पिता, भाई, मित्र, पति, पुत्र के रूप में खुलकर चर्चा करे ताकि उन समस्याओं का हल निकल सके।