महिलाओं पर हिंसा

  महिलाओं पर हिंसा



डॉ. इंदिरा मिश्रा, समाजिक वैज्ञानिक


'पुरुषों के बिना औरत रह ही नहीं सकती।' ‘घर का मुखिया तो पुरुष ही होता है ।' 'बिन पुरुष के स्त्री का अस्तित्व ही क्या?' “भले ही कानून ने नहीं पर समाज ने तो हमें यह अधिकार दिया है कि हम अपनी बीवियों की पिटाई कर सकें।' 'अगर स्त्रियों को बहुत आजादी दी जाएगी तो वे घर-परिवार की इज्जत मिट्टी में मिला देंगी। उनको काबू में रखना जरूरी है।' 'अगर मैं अपनी बीवी को मारता हूं तो उस पर सवाल-जवाब करने का हक किसी का नहीं बनता। उसे डराकर तो रखना ही होगा। यह बहुधा ही सुनी-सुनाई बातें  हैं आक्सफैम संस्था के एक अध्ययन से भी यही प्रतिक्रियाएं सामने आई है। इस अध्ययन में महानगर मझोले नगर, छोटे नगर, कस्बे व ग्रामीण इलाके के विभिन्न आयु-वर्ग के स्त्री पुरुष शामिल थे। अध्ययन से निकलकर आया कि पुरुष हिंसा को जीवन का आम हिस्सा मानते हैं और स्त्रियां प्रायः इस डर तले जीती हैं। वैसे यह पुरुष हिंसा को अच्छा नहीं मानते लेकिन घरेलू हिंसा को अलग श्रेणी में रखते हैं। आम धारणा यह है कि पुरुषों को पूरा अधिकार है कि वे औरतों की गलतियों की सजा उन्हें पीटकर दें। यह अविवाहित युवाओं की भी प्रतिक्रिया थी। वे मां को देवी तो मानते हैं पर यह भी कि वे भी गलतियां कर सकती हैं। पत्नी पर तो भरोसा किया ही नहीं जा सकता। बहनों और बेटियों पर नियंत्रण रखना वे अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं।


भारतीय पुरुष तो 'मेल शोवनिस्ट' के रूप में जाने ही जाते हैं लेकिन कमोबेश स्थिति सारी दुनिया में यही है। सिवाए नार्डिक देशों (नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, डेनमार्क और बेल्जियम) के लगभग सभी देशों की स्त्रियां पुरुषों द्वारा की गई हिंसा की समस्याओं से जूझ रही हैं। फिर चाहे वह अमेरिका हो या इंग्लैंड या अफ्रीका या फिर जापान समेत सभी पूर्वी एशियाई देश। समाजशास्त्री विश्लेषण द्वारा इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि महिलाओं पर हिंसा  उनको दोयम स्थान दिए जाने के कारण होती है। स्त्रियों को अपने अधीन रखने व उन पर अपनी सत्ता का सिक्का जमाने के लिए पुरुष हिंसा के हथियार का इस्तेमाल करते हैं। वे महिलाओं के खिलाफ हिंसा के हथियार का इस्तेमाल केवल शारीरिक बल ज्यादा होने के कारण नहीं करते हैं बल्कि इसलिए कि उन्हें इसके लिए सामाजिक मान्यता मिली हुई है।  स्त्री के आक्रामक व्यवहार को समाज बर्दाश्त नहीं कर पाता है और उसे तुरंत बुरी औरत की संज्ञा दे दी जाती है। स्त्री को दोयम स्थान पर रखने की मानसिकता के चलते पुरुष स्त्री की देह पर अपना पूर्ण नियंत्रण चाहता है। स्त्री की देह को वह अपने उपभोग और मनोरंजन की वस्तु मानता है। वह उसकी देह पर एकाधिकार छोड़ने को कतई तैयार नहीं होता। स्त्री को अपने वश में रखने के लिए वह प्यार व मनौवल का हथियार भी इस्तेमाल करता है। राजा हो या रंक, अपनी पत्नी या स्त्री साथी पर पूर्ण आधिपत्य चाहता है। लड़की को इस नसीहत के साथ ही पाला जाता है कि पति तुम्हारे स्वामी, तुम्हारे भाग्यविधाता हैं। यहां तर्क-वितर्क की कोई गुंजाइश ही नहीं है क्योंकि तर्क तो बराबर वालों से होते हैं। यदि वह इस दायरे से बाहर आती है तो उसे कुल्टा करार कर दिया आती है तो उसे कुल्टा करार कर दिया जाता है। फिर तो उसे मृत्युदंड तक दिया जा सकता है। हिंसा सदा गैरबराबरी के शक्तिसमीकरणों में होती है। पुरुष खुलेआम स्त्रियों के लिए अनादर एवं अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करतेहैं जबकि इसके विपरीत शायद ही कभी होता हो।


समाज के निचले पायदान पर होने के कारण दंगे फसादों व युद्धों की स्थिति में तो स्त्रियां ज्यादा पीड़ित होती ही हैं प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़ या सूखे की स्थितियों में भी वे ज्यादा कष्ट पाती हैं। विस्थापन एवं पुनस्र्थापना के भी विपरीत प्रभावों का भार भी उन्हें ज्यादा उठाना पड़ता है। सारी विकास योजनाएं, कार्यक्रम, तकनीकी व वैज्ञानिक खोजें पुरुषों को केंद्र में रखकर होती हैं। 'घरेलू हिंसा बिल' जिसे कैबिनेट द्वारा सदन केंद्र में रखकर होती हैं। 'घरेलू हिंसा बिल' जिसे कैबिनेट द्वारा मंजूरी मिल चुकी है और जल्दी ही सदन में पेश होने की बात है, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके पारित हो जाने से महिलाओं को बड़ा नैतिक बल मिलेगा। बिल का महत्वपूर्ण पक्ष हिंसा की व्यापक परिभाषा है। इसमें शारीरिक व यौनिक हिंसा के साथ भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक, मौखिक एवं आर्थिक हिंसा को भी शामिल किया गया है। महिलाओं को बच्चा न पैदा होने एवं केवल लड़कियों को जन्मने के कारण सताया जाना भी हिंसा में शामिल किया गया है। पुरुषों के हिंसक व्यवहार को रोका किया पुरुषों के हिंसक व्यवहार को रोका जाना जरूरी है, इस विचार की शुरुआत हो चुकी है। अमेरिका व कनाडा में घरेलू हिंसा के बीच बचाव के व्यापक कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। महिला पुरुष बराबरी की दिशा में स्पेन ने एक अग्रगामी कदम उठाया है। घर के सारे काम-काज व बच्चों की देखभाल में पुरुषों को अब बराबरी से हाथ बंटाना होगा। यह तलाक कानून के नए संशोधन तले हुआ है। अब नए कानून बनने से स्त्रियां पतियों के घर में सहयोग न देने पर तलाक की मांग कर सकती है।