अबद्धता

 


                                                        


              अबद्धता - बढ़ते यौन अपराध और हमारी चेतना


डाँ. इंदिरा मिश्रा- समाज वैज्ञानिक 


समाज में महीलाओं और छोटी   बच्चीयों के साथ,  यौन शोषण, हत्या के समाचार मानवीय संवेदना पर प्रश्नचिन्ह हैं। दोषियों को कठोरतम दंड मिलना ही चाहिए उनसे किसी भी प्रकार की सहानुभूति अनुचित है। समाज में कई ऐसी घटनाए होती हैं महीलाओ के साथ जो पुरी मानव जीति पर सवाल खड़ा करता हैं की जब हम समाज में महीलाओ को सम्मान और सुरक्षा व्यवस्था प्रदान नही कर सकतें तो किस इंसानियत का ढोल बजातें है?


सोशल मीडिया हो या पब्लिक प्लेस कही पर देखों  महीला सुरक्षा की बात करनेे तो सेकड़ो लोग खड़े हो जाएंगे लेकिन धरातल पर मानसिक रुप से महीलाओं  और बेटीयों को सुरक्षा देने के लिये कोई तैयार नही होता है। समाज ेमें महिलाओं से छेड़ छाड़ , बालात्कार जैसी घटनाएं आम बात हो गई है।राजस्थान का अलवर , उदय पुर जिला इन मामलों में सबसें आगें है।


एडुकेशनल फोरम फाँर वुमेन जस्टिस एण्ड सोशल वेलफेयर ने पिछलें तीन सालों  से लगातार यौन हिंसा के खिलाफ राष्ट्रिय जन चेतना अभियान चला रही है । जिसमे महीलाओं ने अपनी समस्याओँ को मुखर रुप से इस मंच के द्वारा समाज के सामनें बरसों से चलें आ रहे अनुउत्तरित प्रश्न को सझा किया ।


बलात्कार अथवा नारी शोषण की बढ़ती घटनाओं पर यह कहने से काम चलने वाला नहीं कि ‘ऐसे अपराध पूरी दुनिया में होते हैं। हमेशा होते रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि इस प्रकार की घटनाएं  किसी भी समाज और सरकार के माथे पर लगा बदनुमा दाग हैं। मनुष्यता पर प्रश्नचिन्ह लगाती ऐसी घटनाएं किसी भी सभ्य समाज के लिए सर्वथा अस्वीकार्य हैं लेकिन प्रश्न यह कि क्या एक दूसरे पर कीचड़ उछालने या सरकार और कानून व्यवस्था को गरियाने मात्र से ऐसी घटनाएं रुक जायेगी? आम धारणा यह है कि हमारे आम धारणा यह है कि हमारे देश में सख्त कानून न होने के कारण ऐसी घटनाएं होती हैं लेकिन कानून में सख्त सजा का प्रावधान मौजूद है। निर्भया मामले सहित कुछ में कठोरतम सजा दी भी गई हैं। उसके बावजूद ऐसी घटनाएं जारी हैं तो हमें समझना होगा कि केवल कानून किसी समाज को सभ्य और सुसंस्कृत नहीं बना सकता। यह काम समाज और समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई होने के नाते परिवार को करना है। परिवार को यह चिंतन करना होगा कि संबंधों की पवित्रता पर कामुकता क्यों हावी हो रही है? जिस समाज में गांव की बेटी को सभी अपनी बेटी या बहन मानते थे, उसी समाज में ‘दृष्टिदोष' क्यों बढ़ रहा है। एक ही गोत्र अथवा गांव में वैवाहिक संबंधों की मनाही थी क्योंकि उन्हें भाई बहन माना जाता था लेकिन आज का सत्य इससे भिन्न है। हम बेटियों को तो बार-बार नसीहतें देते हैं, उनपर निगरानी रखते हैं पर हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या हम अपने बेटों को भी चरित्रवान बनाने के लिए कुछ करते हैं? क्या हमने कभी उसे चेताया है कि पढ़ाई अथवा कमाई में कमतर होना हमें स्वीकार होगा पर उसकी चरित्र हीनता हर्गिज स्वीकार नहीं होगी। क्या हमने उसे लड़कियों से शालीन व्यवहार की नसीहत दी या उसके ‘स्वच्छन्द व्यवहार को ‘पुरुषोचित' मानकर हम खामोश बने रहना चाहते हैं? : हमें यह विचार करना चाहिए कि नारी को देवी मानने वाले देश में पश्चिम की तरह मीडिया द्वारा नारी को एक वस्तु बना कर पेश करनाआखिर क्यों उचित है? नारी सौंदर्य प्रसाधनों की बात तो समझ में आती है लेकिन शेविंग क्रीम, ब्लेड या सिगरेट और शराब के विज्ञापन से अर्धनग्न नारी चित्र क्यों? फिल्मों से विभिन्न टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले धारावाहिकों में नारी के लिजिस तरह के गाने, संवाद और जल इस्तेमाल किये जाते हैं क्या उसका युवा मानसिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता? निश्चित रूप से पड़ता है। युवा मानसिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता? निश्चित रूप से पड़ता है। यदि कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता तो उनका उपयोग करने वालों की मंशा स्पष्ट होनी चाहिए कि वे इन चित्रों का उपयोग ही क्यों करते हैं? यह अध्ययन का विषय है कि क्या चंबन अश्लीलता, छेड़छाड़ को महिमा मंडित करते दृश्यों के प्रदर्शनों से ऐसी घटनाओं में वृद्धि का कोई संबंध हो सकता है या नहीं?


इस विषय में हमें जागरुक होना होगा नवरात्रों में भी हम जिस तरह   देवी  की पुजा अर्चना करतें  है हमारी   संस्कृति में नारी को देवी के रुप में जाना जाता है। आज लोगो का गिरता चरित्र ही महीलाओं की  समाज में असुरक्षा का मुख्य कारण  है। इसका हल है समाज में जन जागरुकता अभियान। नवरात्रों के नौं दिनों के पावन पर्व को हम सिर्फ मूर्ति पूजा तक सीमित रखतें है। वही हमें नारी सम्मान के लियें समाज में नौं दिनों तक जागरुकता अभियान चलाये  सोचो समाज में कुछ तो परिवर्तन होगा ? मेरा मानना है की समाज में निश्चित परिवर्तन होगा बस हमें अपना नजरिया  बदलनें की जरुरता है।