आध्यात्म क्या है? –
What Is The Meaning of Spirituality ?
आध्यात्म शब्द एक आकर्षक शब्द है जिसको जननें की इच्छा हमारें दिल में जागती है जैसे ही ये हमारें नजर के सामने आता है या जब कभी हम इसे सुनते है । बहुत से लेखों को पढ़ने के बाद और आलग अलग विचारों को समझने के बाद मैनें आध्यात्म के विषय को समझा और इसे आज के युवाओं के बीच साधारण भाषा में रखनें का विचार किया और सोचा क्यों ना इस विषय पर कलम से अपनी बात रखी जायें?
आध्यात्म का अर्थ परमात्मा की पूजा करना या उनके बारें में चर्चा करना नही है आध्यात्म का मतलब है खुद को जानना । खुद को जाननें का मतलब है ये बात समझना की व्यक्ति एक आत्मा हैं और वो आत्मा पर्मात्मा का ही अंश है यानी मतलब ये हुआ कि आत्मा एक एसी चेतन शक्ति है जिसमें अनंत ज्ञान छिपा हुआ है। क्योकी व्यक्ति पुरी तरह से मन का गुलाम हो चुका है जो उसे शरीर से बाहर के आबंडरों में जकड़े हुए है, इसीलियें आत्मा के महत्व और आत्म ज्ञान को समझ नही पा रहा है। काम , क्रोध और मोह ये तीन एसे भाव है जो व्यक्ति को उसके आत्मज्ञान से उसे दूर करता है।
स्वामी विवेकानंद ने भी अपना मत आध्यात्म की तरफ रखा था। पूरे विश्व में घूमनें के बाद उन्होने कहा की भारत विश्व गुरु तभी बनेगा जब यहा का युवा आध्यात्म को समझेगा सिर्फ शास्त्रो के अध्ययन मात्र से ही ज्ञान नही मिलता व्यक्ति को खुद को जानने के बाद ही ज्ञान प्राप्त होगा। जब व्यक्ति खुद को जानेगा औऱ विचार शील होगा तब ही वह अपनी भूमिका समाज और राष्ट्र के लिये तय कर सकता है।
जो बात विवेकानंद ने उस वक्त कही थी वह आज वस्तविक्ता में दिख रही है । आज के युवा की दृष्टि आध्यात्म की तरफ नही है । जिसका एक मात्र कारण है की उनके माता पिता भी आध्यात्म शब्द से परिचित नही है और अगर है भी तो अपने बच्चो में उसका ज्ञान नही दे पा रहे है। जिसके वजह से आज का व्यक्ति या युवा प्रश्न तो खूब करता है लेकीन खुद की भूमिका और अस्तित्व को नही समझ पा रहा है। समाज में अगर ये समस्या है तो इसका समाधान है आध्यात्म ज्ञान।
आध्यात्म ज्ञान को प्राप्त करना एक प्रकार की साधना है जिसके लिये व्यक्ति को सबसे पहले अपने मन को बहिर्मुखी से अंतर्मुखी करना होगा। अपने इंद्रियों को उनके विषयों से हटा कर अपने मन के साध आत्मा में केंद्रित करना होगा वहां से जो ज्ञान मिले उसमें व्यक्ति को लोकहितार्थ के लिये कर्म क्षेत्र में कार्य करने की जरुरत है। ये सबसे पेहला चरण है आध्यात्म ज्ञान को प्राप्त करनें का क्योकी आज हमारें अंदर आत्म विश्वास की कमी और अज्ञानता सिर्फ इसीलिये है क्योकी हम अपने मन को नियंत्रित नही कर पातें और ये संसार मे घुमत हुआ हमें कर्मो में बांधता है । कर्मो में बंधने के कारण ही हम काम, क्रोध , लोभ मोह के जाल में फसे रेह जाते है और जीवन में सदैव असंतुष्ट और अशांत रहते है। आध्यात्म ज्ञान व्यक्ति को आस्थाओं व्यर्थ की मान्यताओं से हटा कर उसे वास्तविक और वैज्ञानिक दृष्टिकोंण से खुद को और संसार को समझनें का नजरियां प्रदान करता है। जब व्यक्ति का ज्ञान वास्तविक्ता से जुड़ता है तो व्यक्ति वैज्ञानिक दृष्टि से मानव औऱ विश्व की सेवा में जुटता है।
आध्यात्म ज्ञान के लियें इन पांच प्रश्नो पर व्यक्ति को विचार करना जरुरी है-
- मैं कौन हू?
- मेरा प्रमात्मा से क्या संबंध है?
- परमात्मा के बानायें सृष्टि से मेरा क्या संबंध है?
- मेरा लक्ष्य क्या है जिसके द्वारा मानव जाति औऱ सृष्टी की सेवा की जा सकें?
- लक्ष्य की प्राप्ति का साधन क्या होगा?
आज की पीढ़ी को इन प्रश्नो के आधार पर तैयार करें तो परिवार समाज देश औऱ विश्व के लियें आदर्श व्यक्ति का निर्माण हो सकेगा जो अपनें कार्य औऱ चरित्र से विश्व में अनेको लोगो को ज्ञान का प्रकाश प्रदान करेंगे।