आज़ादी से पहले पहली बार विदेशी सरज़मीं पर भारत झंडा नारी के हाथों से लहराया


भारत की आज़ादी से पहले, साल 1907 में विदेश में पहली बार भारत का झंडा एक औरत ने फहराया था.  पारसी महिला भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी 'इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस' में ये झंडा फहराया था. ये भारत के आज के झंडे से अलग, आज़ादी की लड़ाई के दौरान बनाए गए कई अनौपचारिक झंडों में से एक था. मैडम कामा पर किताब लिखनेवाले रोहतक एम.डी. विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर बी.डी.यादव बताते हैं, "उस कांग्रेस में हिस्सा लेनेवाले सभी लोगों के देशों के झंडे फहराए गए थे और भारत के लिए ब्रिटेन का झंडा था, उसको नकारते हुए भीकाजी कामा ने भारत का एक झंडा बनाया और वहां फहराया." अपनी किताब, 'मैडम भीकाजी कामा' में प्रो.यादव बताते हैं कि झंडा फहराते हुए भीकाजी ने ज़बरदस्त भाषण दिया और कहा, "ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो."


बंगाली लेखक बंकिम चंद्र चैटर्जी की किताब 'आनंदमठ' से निकला गीत 'बंदे मातरम' राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों में लोकप्रिय हो गया. भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर भी 'बंदे मातरं' लिखा था. इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां थीं. झंडे में हरी पट्टी पर बने आठ कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे. लाल पट्टी पर सूरज और चांद बना था. सूरज हिन्दू धर्म और चांद इस्लाम का प्रतीक था. ये झंडा अब पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में प्रदर्शित है. इसके बाद मैडम कामा ने जेनिवा से 'वन्दे  मातरम  नाम का 'क्रांतिकारी' जर्नल छापना शुरू किया. इसके मास्टहेड पर नाम के साथ उसी झंडे की छवि छापी जाती रही जिसे मैडम कामा ने फहराया था. ब्रिटिश सरकार की उन पर पैनी नज़र रहती थी. लॉर्ड कर्ज़न की हत्या के बाद  वो  साल 1909 में पेरिस चली गईं जहां से उन्होंने 'होम रूल लीग' की शुरूआत की. उनका लोकप्रिय नारा था, "भारत आज़ाद होना चाहिए; भारत एक गणतंत्र होना चाहिए; भारत में एकता होनी चाहिए." तीस साल से ज़्यादा तक भीकाजी कामा ने यूरोप और अमरीका में भाषणों और क्रांतिकारी लेखों के ज़रिए अपने देश के आज़ादी के हक़ की मांग बुलंद की.


साभार : https://www.bbc.com/hindi/india-39190433